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यतिशिक्षा
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हजारों व्यक्तियों को सिर झुकाते हुए देखकर तू फूल मत जा । इस शरीर से खूब तपस्या कर, संपूर्ण संयम पाल व उत्तम चारित्र के द्वारा अपना वास्तविक लक्ष (मोक्ष) प्राप्त कर ले।
चारित्र के कष्ट के सामने नरक तियंच के कष्ट यवत्र कष्टं चरणस्य पालने, परत्र तिर्यङ नरकेषु यत्पुनः । तयोमिथः सप्रतिपक्षता स्थिता, विशेषदृष्टयान्यतरं जहीहि तत् ३२
अर्थ चारित्र पालने में इस भव में जो कष्ट पड़ते हैं और परभव में नरक और तिर्यंच गति में जो कष्ट पड़ते हैं उन दोनों में पारस्परिक प्रतिपक्षता है, अतः बुद्धि का उपयोग करके दोनों में से एक को छोड़ दे ॥ ३२ ॥ वंशस्थविल
विवेचन—सच्ची बुद्धि की सहायता से ही अच्छी व बुरी वस्तु की पहचान होती है। जो वस्तु अभी दुःखकर प्रतोत होती है, परन्तु भविष्य में सुखकर होगी वह है चारित्र पालन का कष्ट सहना; परन्तु अभी सुखकर प्रतीत होती हुई भविष्य में दुःखकर होगी वह है चारित्र पालन का कष्ट न सहना। चारित्र का अर्थ है बर्ताव । शुद्ध बर्ताव रखने में और आत्मगुण रमणता करने में मुनि को अभ्यासकाल में बहत सहन करना पड़ता है । चारित्र अर्थात साधु जीवन पालने में उपधि त्याग, परिग्रह त्याग, स्वाद का त्याग भूमि शय्या सतत विहार, केश लोचन आदि के कष्ट सहन करने पड़ते हैं जब कि नरक के वैतरणी नदी, कुंभी पाक आदि एवं तिर्यंच के वधबंधन आदि दुःख ये भी कष्ट हैं। इन दोनों कष्टों में