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अध्यात्म-कल्पद्रुम
को सह लेगा तो भावी जन्मों के कष्ट कम होकर शीघ्र ही इस जन्म मरण के चक्र में से निकल जाएगा, यदि यहां सुख की इच्छा या प्रमाद या विपरीत आचरण से इन परीषहों को न सहेगा तो अगले भवों में ये बढ़ते ही रहेंगे और तुझे इनको भुगतना ही होगा। अतः सहनशील बन ।
देह विनाशी है-जप तप कर मुने न कि नश्वरमस्वदेहमृत्पिडमेनं सुतपोवताद्यः। निपीड्य भीतिर्भवदुःखराशेहित्वात्मसाच्छवसुखं करोषि ॥३१॥
अर्थ-हे मुनि ! यह शरीर रूपी मिट्टी का पिंड नाशवान है, यह तेरा नहीं है, इसे उत्तम प्रकार के तप और व्रतों से पीड़ा देकर अनंत भव में प्राप्त होने वाले दुःखों को दूर करके मोक्ष सुख को आत्म सन्मुख क्यों नहीं कर डालता है ? ॥ ३१ ॥
विवेचन-यह शरीर मिट्टी का पिंड है, अतः नाशवान है। तू इससे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर ले। तेरे आधार से यह रह रहा है न कि इसके आधार से तू रह रहा है। इसका स्वामी तू है न कि यह तेरा स्वामी हे अतः इस शरीर से विविध प्रकार के तप, जप, संयम द्वारा अपना मोक्ष समोप बुला ले । इसे मात्र खाने पीने या सोने में ही मत काम में ले क्योंकि प्रायः देखा जा रहा है कि दीक्षा लेने के बाद तेरा शरीर जाड़ा हो रहा है, तेरा पेट बढ़ रहा है, बादशाही सुख का तू अनुभव कर रहा है अतः इस शरीर के सामने
उपजाति