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अध्यात्म-कल्पद्रुम तरह से विषय सेवन करते हुए स्पर्शन से क्षणिक आनंद प्राता है लेकिन परिणामतः नरनारी वीर्य-रज हीन हो जाते हैं व अशक्ति द्वारा काल के मुंह में जल्दी पहुंच जाते हैं। __ राजा भर्तृहरि के कथनानुसार विचारा जाय तो मालूम हो जायगा कि सुख किसमें हैं । वह कहते हैं कि:
शरीर में रोग उत्पन्न हुवा अत: उसकी दवा की इसमें सुख कौनसा ? प्यास लगने पर शीतल जल पीते हैं इसमें सुख कौनसा ? भूख लगने पर कुछ खाते हैं उसमें सुख कौनसा ? विकार उत्पन्न होता है और प्राणी भोग करते हैं इसमें सुख कौनसा ? ये तो सब शारीरिक व मानसिक व्याधियों का उपचार है, इसमें सुख कहां है ? - वास्तविक सुख तो आत्मा के आनंद में, शांति में, एकांतः मनन में है। इन्द्रिय जन्य सुख, यह नशे की हालत में माना हुवा सुख दुःख है।
पांच प्रकार के प्रमादों में से पहला, मद्य है, उसका प्रचार बढ़ता जा रहा है। नए नए तरीकों से बनाए गए मादक पेय के शोकीन लोग इसे फैशन मानने लग गए हैं । जाति कुल, या धर्म के विचारों को दूर रखकर इसका सेवन करते हैं। दूसरा प्रमाद, विषय है इसका वर्णन कर चुके हैं । तीसरा प्रमाद, विकथा है, अर्थात् आत्मा के अतिरिक्त पदार्थों की कथा ही विकथा है जिसमें राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा व भोजन संबंधी कथा मुख्य हैं। राजकथा व देशकथा की भूख तो प्रायः समाचार पत्रों से प्रज्वलित होती है। स्त्रीकथा की भूख सिनेमा नाटक,