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अध्यात्म-कल्पद्रुम
नहीं आया है फिर भी उनके उपकार का जगत ऋणि है। काल की चक्की में चाहे उनका नाम पिस गया हो लेकिन कार्य तो अमर ही रहेगा अतः स्वप्रशंसा की झूठी तृष्णा को नष्ट करने से ही तेरा आत्मा वास्तविक दशा को प्राप्त कर सकेगा परन्तु मद रहित हुए बिना वह दशा अशक्य है। अतः मद का त्याग कर।
सारांशतः इस अधिकार में कषाय का त्याग अत्यन्त आवश्यक बताया है, बिना कषाय त्याग के प्रात्मा को स्व का भान नहीं हो सकता है अतः कषाय को त्यागने का प्रयत्न करना चाहिए । क्रोध के लिए विद्वानों ने कहा है कि:
संतापं तनुते भिनत्ति विनयं सौहार्दमुत्सादयत्युद्वेगं जनयत्यवद्यवचनं रूते विधत्ते कलिम् । कीति कृतति दुर्मतिं वितरति व्याहंति पुण्योदयं, दत्ते यः कुगति स हातु मुचितो रोषः सदोषः सताम् ॥
अर्थात्-क्रोध संताप करता है, विनयधर्म का नाश करता है, मित्रता का अंत लाता है, उद्वेग पैदा करता है, कुत्सित, पापाकारी वचन बोलता है, क्लेश कराता है, कीर्ति का नाश करता है, दुर्गति को उत्पन्न करता है, पुण्योदय का हनन करता है और कुमति को देता है। ऐसे ऐसे अनेक दोष क्रोध से उत्पन्न होते हैं, बुद्धिमान लोग अनुभव द्वारा समझ सकते है, । अतः क्रोध का आवेश शांत करना चाहिए व उसका सर्वथा त्याग करना चाहिए। मान मीठा विष है जो मधुरता से आत्मा का नाश करता है अतः इसका त्याग करने के लिए इस श्लोक को विचारना चाहिए: