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अध्यात्म-कल्पद्रुम
(४) पक्षी - रसनेंद्रिय के वशीभूत होकर दाना खाने के लोभ में शिकारी की जाल में फंस जाते हैं । दाना तो नजर आता है परंतु जाल नजर नहीं आती है । हमें धन तो नजर आता है लेकिन मौत नजर नहीं आती है । लोभी की एक ही प्रांख खुली रहती है ।
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(५) सर्प – कर्णेद्रिय के वशीभूत होकर सपेरे की पूंगी से आकर्षित होकर पकड़ा जाता है तथा बंधन या वध को पाता है ।
(६) मछली- - रसनेंद्रिय के वश से मच्छीमार के कांटे पर लगे हुए आटे को तो देखती है लेकिन कांटे को न देखकर प्राण खोती है ।
( 9 ) हाथी -- स्पर्शेन्द्रिय के वशीभूत हुवा दूर खड्ड े में खड़ी हथिनी को देखता है और उसके मूत्र को सूंघता हुवा वहां जाने का प्रयत्न करता है, घास से ढके हुए खड्ड े का विचार नहीं कर सीधा भोगता है और फंस जाता है । वह काम विकार से कैसी दुर्दशा को पाता है ।
(८) सिंह - रसनेंद्रिय के वश हुवा सिंह जंगल में शिकारियों द्वारा रखे गए पिंजरे के पास आता है और उसमें रहे हुए बकरे की तरफ ललचाता है । जैसे ही वह उसमें घुसता है, फाटक बंद कर दिया जाता है। पिंजरे के दो भाग होने से बकरे के पास तो वह पहुंच नहीं पाता है, उल्टा स्वयं उसमें फंस जाता है ।