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वैराग्योपदेश
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भूल जाता है और धन, धान्य, स्त्री पुत्र, आदि के लिए अनेक तरह की मेहनत करता है । तुझे ऐसा प्रतीत होता है कि, "मैं कभी मरूंगा ही नहीं, मेरे किए हुए अच्छे बुरे कामों का फल मिलेगा ही नहीं, जो कुछ मैं कर रहा हूं वह सब ठीक है, " परन्तु हे सच्चिदानंद आत्मा ! तू जाग, मोह नींद को त्याग कर विवेक दृष्टि से देख कि वास्तविकता किसमें है ! इलायची कुमार मोहांध होकर बारह वर्ष तक नट कन्या से विवाह करने के विचार से ज्ञान शून्य रहा — उस नशे में उसने घर-बार, माता-पिता, धन-संपत्ति, लोक-लाज सब छोड़ दी, परन्तु जब खेल करते हुए बांस पर चौथी बार चढ़ता है और एक मुनिवर को रूप सुंदरी के सन्मुख एकांत में नत नयना देखता है, तब उसे वैराग्य आता है व विवेक दृष्टि प्राप्त होती है, वह कहता है कि ओह मेरी मोह दशा को धिक्कार है ! वैसे ही तुझे भी कई दृश्य ऐसे नजर आते हैं जिनसे सहज वैराग्य उत्पन्न होता है जैसे कि किसी रोग ग्रस्त हाड़ पिंजर वृद्ध को देखकर, से मोटर के नीचे कुचले हुए मृत प्राय कुत्ते को देखकर, कोढ़ से गले हुए अंगों वाले मानव कलेवर को देखकर, अस्पताल में मृत्यु की प्रतीक्षा करते हुए तीसरी श्रेणी के क्षय रोगी को देखकर । हे भाई ! यदि तुझे इन सब दुखों से निवृत्त होना है तो क्रमश: सांसारिक आसक्ति से दूर होकर वीतराग की उपासना कर । वैराग्य तीन प्रकार के होते हैं: - १ दुःख गर्भित, जो इष्ट वियोग अनिष्ट योग से होता है २. मोहगर्भित, जो आत्मा के विपरीत स्वरूप का