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गुरुशुद्धि
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साथ सबको नरकादि अनंत संसार में डुबाते हैं, अतः ऐसे सियार जैसे पुरुष (कुगुरू) न मिलें तो ही अच्छा है || १४ || उपेंद्रवज्रा
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विवेचन – संसार में भटकते हुए प्राणी को कभी ही ऐसा सुयोग प्राप्त होता है जब कि वह सुगुरू की संगति करता है व उनके उपदेश श्रवण से आत्मकल्याण करता है । जो गुरू स्वयं भी तरने में समर्थ हैं और दूसरों को भी तारने में समर्थ हैं वे उस सिंह के समान हैं जिसने एक जंगल में अपने आश्रित रहते हुए प्राणियों को दावानल से बचाया । जो कुगुरू स्वयं भी तरना नहीं जानते हैं और दूसरों को भी डुबाते हैं वे उस सियार की तरह हैं जो स्वयं भी डूब गया और अपने भरोसे रहे हुए अनेक प्राणियों को भी डुबा दिया । ऐसे कुगुरू न मिलें तो ही अच्छा है ।
कथा - किसी वन के पशुओंों ने अपनी रक्षा के लिए एक सिंह को राजा बनाया। एक बार वन में अग्नि का प्रकोप हुवा | सिंह सब पशुओं को नदी किनारे ले आया और सबको एक दूसरे की पूंछ पकड़ने को समझा दिया और सबसे आगे वाले ने उस सिंह की पूंछ पकड़ी इस तरह से उसने अपनी शक्ति से सबको लेकर नदी पार कर ली और उसके कारण सब ही पशु बच गए । अग्नि शांत होने पर वह सबको वापस उसी जंगल में ले आया ।
इस जंगल के समीप ही एक और जंगल था, उसका राजा एक सियार बना और यश पाने की इच्छा से उसने आग