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उपजाति
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अध्यात्म-कल्पद्रुम अर्थ-वेश, उपदेश और कपट से ठगे हुए भोले लोग तुझे अभी इच्छित वस्तुएं देते हैं, तू सुख से खाता है, सोता है और फिरता है परन्तु आते भव में तुझे उनका फल मालूम पड़ेगा ॥ १२ ॥
विवेचनलोग केवल वेश से ही प्रभावित होकर तुझे खाने पीने को देते हैं यदि तू आचरण विपरीत करता है तो इस ठगाई का फल अगले भव में मिलेगा। उपाध्यायजी ने फरमाया है कि, "जो झूठा दे उपदेश, जनरंजन को धरे वेश, उसका झूठा सकल कलेश हो लाल-माया मोस न कीजे ।
संयम में प्रयत्न न करने वाले को हितोपदेश आजीविकादिविविधात्तिभृशानिशार्ताः, कृच्छण केपि महतैव सृजन्ति धर्मान् । तेभ्योपि निर्दय जिघृक्षसि सर्वमिष्टं,
नो संयमे च यतसे भविता कथं ही। १३ ॥ अर्थ आजीविका चलाना आदि अनेक प्रकार की पीड़ाओं से रात दिन बहुत हैरान बने हुए कितने ही गृहस्थ महा मुसीबत से धर्म काम करते हैं, उनके पास से हे दयाहीन यति ! तू अपनी सब इष्ट वस्तुएं प्राप्त करना चाहता है और संयम में यत्न नहीं करता है, तब तेरा क्या होगा ? ॥ १३ ॥
वसंततिलका विवेचन हे यति ! तुझे अपनी व दूसरे की जरा भी दया नहीं है। गृहस्थाश्रम के अनेक प्रपंच व खर्च में फंसे