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यतिशिक्षा
३०५ हो” इतना सुनने मात्र से महाराज में ये गुण नहीं आ जायेंगे। तू इससे फूल मत जा । गुण तो गुणी के अनुकरण से आवेंगे। यद्यपि वंदन, नमन रुचिकर लगते हैं सुनने में मीठे लगते हैं परन्तु उनका परिणाम पतन है। क्रोध पर विजय, ब्रह्मचर्य का पालन, मान माया का त्याग, निस्पृहता, न्यायवृत्ति और शुद्ध व्यवहार प्रादि गुणों को प्राप्त कर और उनकी सुगंध सब तक पहुंचा। तभी तू स्तुति का पात्र होगा।
भवांतर का विचार—लोकरंजन पर असर प्रध्येषि शास्त्रं सदसद्विचित्रालापादिभिस्ताम्यसि वा समायः । येषां जनानामिह रंजनाय, भवांतरे ते क्व मुने क्व च त्वम् २३
अर्थ-जिन मनुष्यों का मनरंजन करने के लिए तू अच्छे और बुरे अनेक शास्त्र पढ़ता है और मायापूर्वक विचित्र प्रकार के भाषणों से (कंठ शोषादि) खेद सहन करता है आते भव में वे कहां जाएंगे और तू कहां जायगा ॥ २३ ॥
उपजाति
विवेचन इस प्रवृत्तिमय जीवन में व्याख्यान सुनने का समय जनता के पास कम है। प्रतिदिन के व्याख्यान में श्रोताओं की संख्या बहुत ही कम होती है जिनमें भी प्रायः जीवन यात्रा के अंतिम वर्षों को व्यतीत करने वाले वृद्ध स्त्री-पुरुष ही होते हैं। जवानों का तूफानी जीवन उपासरे से दूर रहता है। कभी कभी पर्व तिथियों को वे आते हैं अतः श्रोताओं की इस अनुपस्थिति को दूर करने के लिए
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