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अध्यात्म-कल्पद्रुम
से उड़ते हुए तेरे पुण्य को भी उड़ा ले जाते हैं । तू बिल्कुल पुण्यहीन रह जायेगा। अतः गुणवान बन ।
स्तवन का रहस्य - गुणार्जन भवेद्गुणी मुग्धकृतन हि स्तवैर्न ख्यातिदानार्चनवंदनादिभिः । विना गुणान्नौ भवदुःखसंक्षयस्ततो गुणानर्जय किं स्तवादिभिः २२
अर्थ-भोले जीवों द्वारा की गई स्तुति से कोई मनुष्य गुणवान नहीं बनता है, एवं कीति, अर्चन या पूजन पा जाने से भी गुणवान नहीं बनता है । गुण के बिना संसार के दुःखों का क्षय नहीं होता है इसीलिए हे भाई ! तू गुण उपार्जन कर । इन स्तुति आदि से क्या लाभ है ? ॥ २२ ॥
वंशस्थ और इन्द्रवंशा (उपजाति)
विवेचन—यदि कोई कुंभकार किसी चित्रकार के गुणों की प्रशंसा करता हो इससे चित्रकार को प्रसन्न नहीं होना चाहिए कारण कि कुंभकार को चित्रकला का भान नहीं है वह तो मात्र ऊपरी रंग व बनावट से ही प्रसन्न होकर चित्र की प्रशंसा कर रहा है । हां यदि कोई दूसरा चित्रकार जो इस कला को बारीकियों को जानता है वह प्रशंसा करता है तब तो ठीक ही है और उस चित्रकार को प्रसन्न होने का अधिकार भो है। इसी प्रकार से भोले अंध श्रद्धालु व अज्ञानी लोग तेरी प्रशंसा करते हुए तुझे ऐसा कहें कि, "महाराज आप ता समताशील हो, शांत चित्त व महायोगी हो, या महाज्ञानी