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अध्यात्म-कल्पद्रुम
पीछे स्तुति तो अपने आप ही चली आएगी । हे वेषधारी ! तू क्यों सावधान नहीं होता है । तू अपने नाम के आगे बड़े बड़े विशेषण लगवाते क्यों नहीं शर्माता है । कभी कभी तो तू ऐसे विशेषण लगवाता है जिनको पढ़कर तेरे प्रति घृणा पैदा हो जाती है । तेरे अंध भक्त तुझे परमात्मा के बराबर मानकर पूजते हैं परंतु तू तो स्वयं अपने आप को जान रहा है कि तू कैसा है । कभी तूने विचार किया है कि क्या ये विशेषण तेरे योग्य हैं ? यदि नहीं, तो तू पढ़ा लिखा मूर्ख है । गुण बिना के वंदन पूजन के फल
गुणेषु नोद्यच्छसि चेन्मुने ततः, प्रगीयसे यैरपि वंद्यसेऽर्च्यसे । जुगुप्सितां प्रेत्य गतिं गतोऽपि तैर्हसिष्य से चाभिभविष्यसेऽपि वा २०
अर्थ - हे मुनि ! तू गुण प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करता है अतः जो अभी तेरे गुणों की स्तुति करते हैं, तुझे वंदना करते हैं और पूजते हैं वही लोग जब तू कुगति में जाएगा तब वे वास्तव में हंसेंगे और तेरा अपमान करेंगे ॥ २० ॥
वंशस्थविल
विवेचन—जैसे कोई आदमी बहुत दिखावा करता हुआ दूसरों को उपदेश देता फिरता हो, सबके सामने पंडित व सदाचारी बना हुवा इमानदारी से काम करता हुआ नजर आता हो परन्तु यदि कभी वह चोरी या व्यभिचार करता हुआ पकड़ा जाये तब उसका क्या हाल होता है ? जो लोग उसकी स्तुति करते थे वही मजाक उड़ाएंगे व अपमान करेंगे। वैसे ही हे मुनि ! तू,