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यतिशिक्षा
३०१ अर्थ-तू गुण रहित है फिर भी लोगों के पास से वंदन, स्तुति, पाहार पानी आदि खुश होकर पाने की इच्छा रखता है परंतु याद रखना कि भैंस, गाय, घोड़ा, ऊंट या गधे की योनि में जन्मे बिना तेरा छुटकारा नहीं है ॥१६॥ वंशस्थ
विवेचन—जो जिसका ऋणी होता है उससे उऋण हुए बिना उसका छुटकारा नहीं होता है। हे साधु तू निर्गुणी है फिर भी भोले लोगों से वंदन, सत्कार और खान पान ग्रहण करता है इसका चुकारा तुझे कभी भैंसा, गाय, घोड़ा, ऊंट या गधा बनकर करना होगा । तू यह न समझ रखना कि लोग तुझे विनति कर खूब सत्कार से अपने घर गोचरी के लिए ले जाते हैं उसका बदला देना ही नहीं पड़ेगा ? उसका बदला तुझे उनके यहां गाड़ी में जुतकर या सवारी में काम
आकर या बोझ लाद कर देना होगा कारण कि वे तुझे गुणी धर्मात्मा और उपकारी जानकर यह सब देते हैं जब कि तू उनका अन्न खाकर वस्त्र पहन कर या सत्कार पाकर मन में फूला नहीं समाता है, प्रमादी बनकर अपनी कीर्ति फैलाने में लगा हुवा है और गुप्त रूप से अपनी वृद्धावस्था प्राराम से निकले वैसे स्थान बनाने में या धन संग्रह करने में या ऐसे व्यक्ति ढूंढने में लगा है जो तेरे स्वार्थों की पूर्ति कर सकते हों उनकी सहायता से तू विपरीत मार्ग का पालंबन कर स्वयं का व उनका पतन करता है अतः गुण के बिना स्तुति की इच्छा मत रख। गुण के लिए प्रयत्न कर। जैसे पशुओं के पीछे पूंछ अपने आप चली आती है वैसे ही गुण के