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यतिशिक्षा
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( स ) योगचूर्ण - पुद्गल में अनंत शक्ति है । दो या अधिक वस्तुत्रों के संयोग से ऐसे चूर्ण बनाए जा सकते हैं जो चमत्कारी होते हैं । जैसे कि उस चूर्ण को पानी में डालने से मछलियां उत्पन्न हो जाती हैं । सिंह बन जाता है । जल में रास्ता बन जाता है। पुद्गल की शक्ति को वस्तु विज्ञान शास्त्री जल्दी समझ सकता है ।
( ब ) योगवहन सूत्र - इस सूत्र को साधु ही पढ़ सकते हैं जिसमें भी निश्चित वर्षों की दीक्षा के पश्चात् एवं तत्संबंधी क्रिया करने के बाद ही । इसका सामान्य हेतु यह है कि इससे मन वचन काया पर योग्य अंकुश आता है ।
योगवहन की क्रिया में अमुक विधि और तपस्या करने के बाद पाठ पढ़ने की आज्ञा मिलती है, इसे उद्देश कहते हैं । इससे अधिक योग्यता होने पर गुरु महाराज इस पाठ की पुनरावृत्ति करने की, स्थिर करने की और तत्संबंधी शंका समाधान आदि की बातचीत करने की आज्ञा देते हैं इसे समुद्देश कहते हैं । इससे भी अधिक योग्यता होने पर उन्हीं पाठों को पढ़ाने की और उनका योग्य उपयोग करने की आज्ञा देते हैं उसे अनुज्ञा कहते हैं ।
जो निर्गुणी होता हुआ भी स्तुति की इच्छा रखता हो उसका फल होनोऽप्यरे भाग्यगुणैर्मुधात्मन्, वांछंस्तवार्चाद्यनवाप्नुवंश्च । ईर्ष्यान् परेभ्यो लभसेऽतितापमिहापि याता कुर्गात परत्र ॥ १८ ॥