________________
यतिशिक्षा
२६३ हुए लोग महामुसीबत से घर खर्च चलाते हैं फिर भी उस खर्च में से करकसर करके धर्म के काम में द्रव्य खरचने के हेतु तुझे इष्ट वस्तुएं देते हैं या तेरे कथनानुसार द्रव्य लगाते हैं परन्तु तू अपने प्रतिगुप्त अंध भक्तों के पास उस द्रव्य को पहुंचाने का प्रयत्न करता है एवं वहां उस जमा द्रव्य का इच्छित उपभोग करता है। कोई कोई तो साधु वेश का त्याग कर किसी भोलो विधवा आदि को फंसाकर घर मांड बैठता है, महामुश्किल से अंगीकार किए गए चारित्र का खंडन करके नरकगामो बनता है इस तरह से तुझे पराई दया भी नहीं है और अपनी स्वयं की दया भी नहीं है। निर्गुणी मुनि की भक्ति से स्वयं उसे तथा उसके भक्तों को कुछ भी
फल नहीं मिलता है पाराधितो वा गुणवान् स्वयं तरन्, भवाब्धिमस्मानपि तारयिष्यति । श्रयन्ति ये त्वामिति भूरिभक्तिभिः,
फलं तवैषां च किमस्ति निर्गुण ॥ १४ ॥ अर्थ-इस गुणवान पुरुष की आराधना की जाय तो वह जब भवसमुद्र तरेगा तब हमें भी तारेगा, इस प्रकार की बहुत भक्ति से कई मनुष्य तेरा आश्रय लेते हैं। इससे हे निर्गुणी ! तुझे और उनको क्या लाभ होगा ॥ १४ ॥
इंद्रवज्रा तथा वंशस्थ ( उपजाति ) विवेचन–बिचारे अल्पज्ञानी जीव, भद्रिक भाव से व धर्म बुद्धि से तेरा आसरा लेते हैं जिसका ध्येय संसार समुद्