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अध्यात्म-कल्पद्रुम से तरने में तेरी सहायता लेना है, ऐसी सहायता तो तू कुछ देता नहीं है, दे सकता भी नहीं है तब तुझे क्या लाभ होगा क्योंकि तू निर्गुणी है।
तुझे सुपात्र जानकर-धर्मक्षेत्र जानकर उत्तम वस्तुएं वोराते हैं और उनको पुण्य बंध होगा व उस पुण्यबंध में तू निमित्त है अतः तुझे भी पुण्यबंध होगा ऐसा सोचना मात्र कल्पना है। यदि तू वास्तव में गुणवान व संयमी है और वेश के अनुरूप ही तेरा व्यवहार है तब तो उनको और तुझको पुण्य का बंध होगा नहीं तो तुम दोनों को कोई लाभ नहीं मिलेगा।
निर्गुणी मुनि को पाप का बध होता है स्वयं प्रमानिपतन भवांबुधौ, कथं स्वभक्तानपि तारयिष्यसि । प्रतारयन् स्वार्थभृजून शिवार्थिनः, स्वतोऽन्यतश्चैव विलुप्यसेंऽहसा।।
प्रथतू स्वयं प्रमाद के द्वारा समुद्र में पड़ता जाता है तो फिर अपने भक्तों को किस प्रकार से तार सकेगा ? बिचारे मोक्षार्थो सरल जीवों को अपने स्वार्थ के लिए ठगकर स्वयं के द्वारा व दूसरों के द्वारा तू स्वयं पाप से लिप्त होता है ॥ १५॥
वंशस्थविल विवेचन—जैसे कोई मनुष्य किसी वृक्ष के नीचे विश्राम करने के लिए शांति से बैठे परंतु यदि वह वृक्ष अग्नि उगलता हो तो कितना आश्चर्य होता है ! क्या फिर कभी कोई मनुष्य किसी हरे वृक्ष के नीचे बैठेगा ? नहीं, कदापि