________________
यतिशिक्षा
२७७
कषाय करता है; परिषह तथा उपसर्ग सहन नहीं करता है । (अठारह हजार) शीलांग धारण नहीं करता है, फिर भी तूं मोक्ष पाने की इच्छा रखता है, परन्तु हे मुनि ! वेश मात्र से संसार समुद्र को कैसे पार करेगा ? ॥ २-३ ॥
विवेचन ऊपर भावनामय मुनि का रूप कहा, यहां व्यतिरेक रूप से उनको क्या करना चाहिए वह कहते हैं :
१. पांच प्रकार का स्वाध्याय प्रतिदिन करना चाहिए । जो
इस प्रकार से है :-वांचना, (पढ़ना); पृच्छना (शंका पूछना); परावर्तना (पिछला याद करना); अनुप्रेक्षा
(विचारणा); धर्मकथा। २. पांच समिति और तीन गुप्ति जो साधु के खास लक्षण
हैं उन्हें आठ प्रवचन माता कहते हैं, इनका पालन अवश्य करना चाहिए। वे ये हैं :अ—इर्या समिति निर्जीव मार्ग में सूर्योदय के पश्चात्
साड़ा तीन हाथ आगे नजर रखकर जीवों की रक्षा करते हुए चलना । रात को न चलना ।
आ-भाषा समिति–निरवद्य (पाप रहित ) सत्य,
हितकारी और प्रिय वचन भी विचार कर बोलना।
'इ–एषणा समिति–अन्नपाणी आदि लेते समय ४२ दोष
टालना।