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यति शिक्षा
२७५ द्वेष से मुक्त रहता है, जिसने पाप कार्यों को शांत किया है, जिसने समता द्वारा अद्वैत सुख प्राप्त किया है और जो सद् भावना भाता हुआ संयम गुण रूपी उद्यान में सदा खेलता है - इस प्रकार का जिनका मन हुवा है वे मुनि यह संसार समुद्र तर गए हैं अतः उनको हम नमस्कार करते हैं ।
शार्दूलविक्रीडित
विवेचन सच्चे मोक्षार्थी प्राध्यात्मी मुनिराजों की स्थिति का प्रथक्करण करते हुए नीचे के गुण स्पष्टतर आते हैं । ( १ ) शुद्ध मुनिराज पांच इन्द्रियों के तेईस विषयों में आसक्त नहीं होते हैं । उनको विलेपन पर राग नहीं होता है । चाय, दूध, मिठाई या दूधपाक, शिखंड देखकर उनके मुंह में पानी नहीं छूटता है । दुर्गंध और सुगंध में वे समबुद्धि रहते हैं । स्त्रियों का रूप लावण्य उनको स्खलित नहीं करता है । मधुर संगीत, विषय रस पोषक गानें उन्हें मरण समय के विलाप तुल्य प्रतीत होते हैं ।
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(२) क्रोध, मान, माया, लोभ को जिन्होंने जीत लिया होता है ।
(३) संसार के कारणभूत राग, द्वेष को जिन्होंनें छोड़ दिया होता है ।
( ४ ) अशुभ अध्यवसाय से रहित होने से वे अशुभ कर्म नहीं बांधते हैं ।
(५) समतारूपी रंग से उनका जीव रंगा हुआ होता