________________
अथ त्रयोदशो यतिशिक्षोपदेशाधिकारः
पिछले अधिकार में गुरु महाराज को स्वीकार करने के लाभों का वर्णन किया है । इस अधिकार में यति योग्य शिक्षा दी जाती है । यति शब्द में संसार से विरक्त रहने की प्रतिज्ञा करने वाले साधु, यति, श्रीपूज्य, द्रव्यलिंगी और भट्टारक इन सबका समावेश है । इस पाठ में प्रथम वर्ग को उद्देश्य कर शिक्षा दी गई है । केवल वेश देखने की आवश्यकता नहीं है वरन व्यवहार भी देखना चाहिए । यह अधिकार दंभी, दुराचारी, या वेशधारी को पहचानने में सहायक होने से सभी को उपयोगी है ।
मुनि महाराज का भावनामय स्वरूप
ते तीर्णा भववारिधि मुनिवरास्तेभ्यो नमस्कुर्महे, येषां नो विषयेषु गृध्यति मनो नो वा कषायैः प्लुतुम् । रागद्व ेषविमुक् प्रशांतकलुषं साम्याप्तशर्माद्वयं, नित्यं खेलति चात्मसंयमगुणाक्रीडे भजद्भावनाः ।। १ ।।
चर्थ - जिनका मन इन्द्रियों के विषयों में आसक्त नहीं होता है या कषायों से व्याप्त नहीं होता है, जो ( मन ) राग