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यतिशिक्षा
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भावना से साधुपन स्वीकार करने पर भी यदि तू बरताव शुद्ध नहीं रखता है और केवल साधु के भेष से ही फूला फूला फिरता है और उस वेश के कारण भोले लोग तुझे सच्चा साधु समझते हैं, तू उनकी श्रद्धा का दुरुपयोग करके कई तरह के बहाने या झूठे कारण बताकर कपड़े, दवाइयां, घड़िया, पेन, पोस्ट कार्ड और आड़ी रीति से रुपये भी मंगाकर अपने विश्वस्थनीय व्यक्ति के पास भेजवाता है या ' किसी व्यक्ति को नौकर रखकर उसके पास जमा करवाता है और पश्चात् उस धन से मनमाना खानपान करता है इससे तू स्वयं अपने आप के लिए नरक के कष्ट निश्चित करता है। बिना गुण के ही तू पूजा की इच्छा रखता है इसीलिए लौकिक दृष्टांत बना है कि :
मूंड मुंडाए तीन गुण मिटे सिर की खाज ।
खाने को मोदक मिले लोग कहें महाराज ॥ यदि तू केवल वेष ही साधु का रखता है, बर्ताव वैसा नहीं रखता तो निश्चित ही तू नरक में जाने वाला प्रतीत होता है । अतः वेष के अनुरूप आचरण कर ।
बाह्य वेश धारण करने का फल
जानेऽस्ति संयमतपोभिरमीभिरात्मनस्य प्रतिग्रहभरस्य न निष्क्रयोपि । किं दुर्गतौ निपततः शरणं तवास्ते, सौख्यं च दास्यति परत्र किमित्यवेहि ॥ ६ ॥