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अध्यात्म-कल्पद्रुम लगने पर सिंह की तरह साहस करना शुरू किया। उसमें इतनी शक्ति व साहस कहां ? परिणाम यह हुवा कि बेचारे सब ही प्राणी बीच नदी में डूब मरे वह सियार तो खैर डूबा ही मगर साथ में सबको ले डूबा।। ___ इसी प्रकार से कई वेशधारी मुनि जो मात्र उपकरणों के लिए लड़ते झगड़ते हैं जिन्हें तत्त्वज्ञान होता नहीं वे उन बेचारे ग्रामीण अशिक्षित श्रद्धालु लोगों को विपरीत मार्ग बताकर केवल कथा, कवित्त में फंसाए रखकर मझधार में डुबाते हैं खुद भी नरक नदी में डूबते हैं दूसरों को भी डुबाते हैं । आज सिंह गुरु के दर्शन दुर्लभ हो रहे हैं।
गुरु का संयोग होने पर भी जो प्रमाद करता है वह अभागा है पूर्णे तटाके तृषितः सदैव, भृतेऽपि गेहे क्षुधितः स मूढः । कल्पद्रुमे सत्यपि ही दरिद्रो, गुर्वादियोगेऽपि हि यः प्रमादी ।।१५।। ___अर्थ-गुरु आदि के योग होने पर भी जो आलस्य करता है वह उस मनुष्य के जैसा है जो तालाब पास होने पर भी प्यासा रहता है, धनधान्य से भरे हुए घर में भी भूखा रहता है और कल्पवृक्ष पास होने पर भी दरिद्र ही रहता है ।।१५॥
उपजाति - विवेचन-गुरु महाराज का बड़ा महत्त्व है वे सच्चे मार्गदर्शक होते हैं । मुक्ति का बीज (सम्यक्त्व-सच्ची श्रद्धा) बोने वाले भी वे ही होते हैं । शुद्ध देव-गुरु-धर्म में श्रद्धा पाए बिना मुक्ति नहीं होती है, इन तीनों रत्नों का ज्ञान कराने वाले ये गुरु