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धर्मशुद्धि
शुद्धं पुण्य जल में मैल
शैथिल्यमात्सर्य कदाग्रहऋ धोऽनुतापमदंभाविधिगौरवाणि च । प्रमादमानौ कुगुरु: कुसंगतिः, श्लाघार्थिता वा सुकृते मलाइमे ॥ २ ॥ अर्थ- सुकृत में इतने पदार्थ मैल रूप हैं- शिथिलता, मत्सर, कदाग्रह, क्रोध, अनुताप, दंभ, अविधि, गौरव, प्रमाद, मान, कुगुरु, कुसंग तथा आत्म श्लाघार्थिता ।। २ ।। उपजाति
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विवेचन शास्त्रकार कितने उपकारी है वीतराग द्वारा कथित विद्या के अनुसार उन्होंनें कितनी महत्व की तात्त्विक बातें लिख दी हैं । इनसे आत्मा को बड़ा आनन्द आता है, बड़ी शांति उत्पन्न होती है । कितनी बारीकी से वे शास्त्रों के अन्दर घुस गए हैं, अत: सब बातें स्पष्ट बताई हैं | धन्य हैं वीतराग व उनसे उपदिष्ट मार्ग को बताने वाले गुरुत्रों को । इस श्लोक में स्पष्ट कहा है कि सुकृत में इतनी चीजें मैल पैदा करने वाली हैं- शिथिलता - धर्म क्रिया में मंदता या ढिलाई, मत्सर- परगुण की ईर्ष्या ; को जानते हुए भी दूसरों के सामने अच्छा बताना या जिद करना; क्रोध - गुस्सा ; अनुताप – शुभ काम करके पछताना कि न किया होता तो अच्छा रहता; माया कपट — कहने व करने में भिन्नता; प्रविधि - शास्त्रानुसार न करके अपनी मति से विपरीत आचरण; गौरव — मैंने यह बड़ा काम किया इसलिए मैं बड़ा हूं; मान – अभिमान प्रमाद - आलस्य ; कुगुरू — समकित व व्रतादि रहित दिखावटी वेशधारी, जिन वचन से विपरीत चलने वाला पुरुष; कुसंग – हलके स्वभाव
कदाग्रह - अपनी भूल