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गुरुशुद्धि
२५७ में वे दीपक लेकर जरूर आगे आगे चलेंगे और अपने अनुयायियों के साथ वहां पहुंच कर कई सागरोपम तक वहीं रहेंगे।
शुद्ध, देव, गुरु और धर्म को भजने का उपदेश गजाश्वपोतोक्षरथान् यथेष्टपदाप्तये भद्र निजान् परान् वा । भजति विज्ञाः सुगुणान् भजवं, शिवाय शुद्धान् गुरुदेवधर्मान् ॥४॥
अर्थ हे भद्र ! जिस प्रकार से चतुर पुरुष इच्छित स्थान पर पहुंचने के लिए अपने या दूसरों के हाथी, घोड़े, जहाज, बैल और रथ उत्तम देखकर रख लेते हैं उसी तरह से मोक्ष प्राप्त करने के लिए तू शुद्ध देव, गुरु और धर्म को भज ॥ ४॥
___ उपेंन्द्रवज्रा
___विवेचन—जैसे गंतव्य स्थान पर शीघ्र एवं सुख से पहुंचने के लिए अच्छी सवारी ली जाती है वैसे ही मोक्ष नगर में पहुंचने के लिए अठारह दोषों रहित देव, पांच महाव्रतधारी गुरु एवं प्राप्त प्रणित (जिनोक्त) धर्म का आश्रय लेना चाहिए । सद् देव रथ में हो । रथ हांकने वाले सदगुरु हो, सद् धर्म की ध्वजा फरकती हो, तो वह रथ शीघ्र ही मोक्ष में पहुंचेगा। अपने कुल के देव, गुरू या धर्म इन लक्षणों वाले हों तो ग्राह्य हैं लेकिन यदि विपरीत हो तो हठ बुद्धि वह राग दृष्टि से उनका अनुकरण नहीं करना चाहिए । जैसे घर का घोड़ा भी अड़ियल हो तो उसे भी छोड़ना ही पड़ता है वैसे ही कुल के गुरु परीक्षा में ठीक न लगते हों तो वे छोड़ने योग्य हैं। ३१