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अध्यात्म-कल्पद्रुम
करना चाहिए जिससे वह व्यक्ति की अपेक्षा गुण पर अनुराग
करना सीखा देंगे ।
राग न करशो कोई जन नवि रहेवाय तो करजो
मणी जेम फणि
कोई शुं रे, मुनि शुं रे;
विषनो तेम तेहो रे,
रागनुं भेषज सुजस सने हो रे । श्री हेमचन्द्राचार्यजी ने वीतराग स्तोत्र में कहा है कि:काम राग और स्नेह राग तो अल्प प्रयत्न से दूर किए जा सकते हैं परन्तु पापी दृष्टि राग तो सज्जन मनुष्यों के लिए भी दुरुच्छेद है, महान कठिनाई से काटने योग्य हैं । दृष्टिराग का अर्थ है मिथ्यात्व जन्य मोहनीय कर्म के उदय से होता हुवा अस्वाभाविक प्रेम । हमारी समाज में दृष्टिराग के कारण ही तिथिचर्चा जैसे विषय कई वर्षों से समाज में उथल पुथल मचा रहे हैं । आज इसी एक दृष्टिराग से अनेक मतमतांतर वाड़े व गच्छ परंपराएं बढ़ती जा रही हैं | सच्चे गुरु के प्रभाव से समाज नायक रहित होकर छिन्न भिन्न हो रही है । अनेक आचार्य होते हुए भी समाज का कोई धणी नहीं हैं ।
वीर परमात्मा से निवेदन, शासन में लुटेरों का जोर न्यस्ता मुक्तिपथस्य वाहकतया श्रीवीर ये प्राक् त्वया, लुंटाकास्त्ववृतेऽभवन् बहुतरास्त्वच्छासने ते कलौ । विभ्राणा यतिनाम तत्तनुधियां मुष्णंति पुण्यश्रियः पूत्कुर्मः किमराज के ह्यपि तलारक्षा न किं दस्यवः || ६ ||