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गुरुशुद्धि
२६३ तक करते हैं ऐसे शासन घातकी लुटेरों पर विश्वास करने के पहले एवं उन पर दृष्टिराग लाने से पूर्व हमें पूर्णतया जांच कर लेनी चाहिए नहीं तो भविष्य में (भावी जीवन में, आते भव में) पछताना पड़ेगा। अतः अंधविश्वासी, भोले भगतों को अपनी आंखे खोलनी चाहिए।
अशुद्ध गुरु मोक्ष नहीं दिला सकते हैं, दृष्टांत नानं सुसिक्तोऽपि ददाति निबकः, पुष्टा रसैवंध्यगवी पयो न च। दुःस्थो नृपो नैव सुसेवितः श्रियं, धर्म शिवं वा कुगुरुर्न संश्रितः ॥ ८ ॥
अर्थ-उत्तम रीति से सींचे जाने पर भी नीम का वृक्ष आम्र फल नहीं दे सकता है, रस (गन्ना, घी, तेल) खिलाकर पुष्ट हुई भी बांझ गाय दूध नहीं दे सकती है। राज्यभ्रष्ट राजा उत्तम रीति से सेवित होता हुवा भी लक्ष्मी नहीं दे सकता है। उसी प्रकार से कुगुरु भी आश्रय लेने पर शुद्ध धर्म और मोक्ष देने में या दिलाने में समर्थ नहीं हो सकता है॥ ८॥
विवेचन—जैसे सुसींचित नीम से आम, सुरसखाद्य भोजन से वंध्या गाय से बच्चा, सुसेवित राज्य भ्रष्ट राजा से धन प्राप्त नहीं हो सकता वैसे ही कुगुरु से धर्म नहीं मिल सकता है। .