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गुरुशुद्धि
२६१ अर्थ हे वीर परमात्मा ! जिनको तू ने पहले मोक्षमार्ग के सार्थवाह स्थापित किए थे वे ही कलयुग में तेरी अनुपस्थिति में तेरे ही शासन में बड़े लुटेरे बन गए हैं । वे यति का नाम धारण करके अल्प बुद्धि वाले प्राणियों की पुण्यलक्ष्मी को चुरा लेते हैं। अब हम क्या पुकार करें ? क्या राजा के बिना राज्य में कोतवाल ही चोर नहीं बन जाता है ? ॥ ६ ॥
शार्दूलविक्रीडित
विवेचन-वाड़ ही स्वयं खेत खाने लग जाय तो किसान कहां जाय ! किसको पुकारे । आज कई पंचमहाव्रतधारी साधु ही भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी व पाखण्डी हो रहे हैं तब बिचारे श्री पूज्य, यति, व गोरजी की तो बात ही क्या वे तो चतुर्थ श्रेणी के गुरु हैं। हे वीर परमात्मा ! आपके अंतिम पट्टधर जंबु स्वामी के पीछे कितने ही मुनिपुंगव हुए जिन्होंने शासन की वृद्धि की लेकिन आज उसी पदवी व वस्त्र पात्र की परिपाटी को धारण करने वाले साधु, उपाध्याय, प्राचार्य समाज में कितना विष फैला रहे हैं बिचारे भोले श्रावकों का धन अपने नाम के लिए बहा रहे हैं ये लुटेरे धर्म के नाम पर ढोंग कराकर धर्म को बदनाम कर रहे हैं । अब हम किसको पुकारें।
अशुद्ध देव गुरु धर्म से भविष्य में पछतावा माद्यस्यशुद्धैर्गुरुदेवधर्मेधिग्दृष्टिरागेण गुणानपेक्षः । प्रमुत्र शोचिष्यसि तत्फले तु, कुवथ्यभोजीव महामयातः ॥७॥
वा