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अध्यात्म-कल्पद्रुम सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। इन सातों में प्रायः सभी गुणों का समावेश हो जाता है।
विपत्ति के कारण जिनेष्वभक्तिर्यमिनामवज्ञा, कर्मस्वनौचित्यमधर्मसंगः । पित्राद्य पेक्षा परवंचनंश्च, सृजन्ति पुंसां विपदः समंतात् ॥१२॥
अर्थ-जिनेश्वर की तरफ अभक्ति (अशातना), साधुओं की अवज्ञा, व्यापार आदि में अनुचित प्रवृत्ति, अधर्म की संगति, पिता आदि की उपेक्षा (बेपरवाही) और ठगाई ये मनुष्य को चारों तरफ से आपत्तियां उत्पन्न करती हैं ॥ १२॥
__उपजाति विवेचन वीतराग जिनेश्वर के प्रति अनादर, अप्रीति और अविनय ; उपकारी गुरू का तिरस्कार अपमान और अवज्ञा; प्रतिदिन के धंधे में अनीति व बेईमानी, पर स्त्री गमन, जूमा आदि; दुर्जन एवं ढोंगी, विपरीत पाचरण वाले अधम, पापी मनुष्य की संगति; माता पिता की सेवा से मुंह मोड़ना, उनसे दुर्व्यवहार करना, उनके भोजन या सेवा का प्रबंध न करना; दूसरों को ठगना, छल कपट करना एवं उनकी अज्ञानता से लाभ लेकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर उनको हानि पहुंचाना; ये छ: बातें हर प्रकार से आपत्तियों को लाने वाली हैं।
___इन दोनों श्लोकों का अर्थ विचार कर गहराई से सोचना