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अध्यात्म-कल्पद्रुम ___ अर्थ इस संसार में गुप्त सुकृत (पुण्य) जैसा सुख देते हैं वैसा सुख खुले सुकृत (पुण्य) नहीं देते हैं। जैसे लज्जायुता नत वदना, कमलनयना भामिनी के वक्षस्थल खुले होने की अपेक्षा ढके होने पर अधिक सुंदर दीखते हैं। वसंततिलका
विवेचन—गुप्त रीति से किए गए जप तप, दान आदि जैसा फल देते हैं वैसा खुले रूप से किए गए सुकृत फल नहीं देते हैं। गुप्त रूप से करने वाले को प्रात्मशांति रहती है जब कि खुले रूप से करने वाले को प्रशंसा की भूख, लोक दिखावा, कुल मर्यादा आदि सबका डर रहता है एवं वह उस सुकृत का तुरंत फल, प्रशंसा के शब्दों के रूप में लेकर संतुष्ट हो जाता है जब कि गुप्त रूप से करने वाले को गुप्त, अगोचर स्थान (मोक्ष) की प्राप्ति होती है।
स्व गुण प्रशंसा से जरा भी लाभ नहीं है स्तुतैः श्रुतैर्वाप्यपरनिरीक्षितैर्गुणस्तवात्मन् सुकृतैर्न कश्चन । फलन्ति नैव प्रकटीकृतैर्भुवो, द्रुमा हि मूलनिपतंत्यपि त्वधः ॥१०॥
अर्थ तेरे गुणों या सुकृत्यों की अन्य लोग स्तुति करें, अथवा तेरे उत्तम कामों को दूसरे लोग देखें या सुनें इससे हे चेतन ! तुझे कोई लाभ नहीं है । जैसे वृक्ष की जड़ें खुली कर दी जाय तो वह वृक्ष फलता नहीं हे वरन जमीन पर गिर जाता है ॥ १० ॥
वंशस्थविल विवेचन—जैसे वृक्ष की जड़ों पर से मिट्टी हट जाती है तो वह गिरकर नष्ट हो जाता, मधुर फल मिलना तो