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वैराग्योपदेश
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से तो तू डरता है और जब कि तेरे खुद के कृत्यों से होने वाले नरक निगोद के महाकष्ट को अंगीकार करता है। धिक्कार है तेरी बुद्धि को ।। २५ ॥ शालिनी
विवेचन-तू सर्दी, गर्मी को दूर हटाने के लिए आधुनिक साधनों का उपयोग करता है, कमरे में एक भी मच्छर या मक्खो न आ जाय उसका ध्यान रखता है (कोई २ तो जन्तु नाशक पदार्थ भी छिड़काते हैं) और हर प्रकार से कष्ट से दूर रहने का उपाय करता है, जाड़े कपड़े और मोटे अन्न तुझे नहीं रुचते हैं, मोटी रोटी और सादे आहार से तुझे घृणा है, इतने आराम से तू रहना चाहता है लेकिन इन थोड़े से कष्टों की चिन्ता करने वाले हे बुद्धिमान, तू अपने ही कुकृत्यों से बहुत कष्टदायी और बहुत लम्बे समय तक भुगते जाने वाले महा दुःखों का संग्रह कर रहा है, धन्य है तेरी बुद्धि को ! येन केन प्रकारेण धन पैदा कर तू यश पाना चाहता है, बुद्धिमानी से गरीबों को चूसकर दिखावे के लिए अस्पताल खोलता है, दान की बड़ी बड़ी रकमों की घोषणा करता है परन्तु हे मित्र तेरे यह लोक दिखावे के कारनामे असली पाप को धो नहीं सकेंगे अतः तू तपस्या द्वारा अपने दुष्ट कर्मों को हटा । साधु अवस्था में छुपे अनाचारों या व्यभिचारों से बचकर रह, तेरा यह वेश चाहे अन्य लोगों की आंखों में धूल डालता हो लेकिन तेरी खुद की आंखों के लिए तो अंजन का काम देगा । तू जरा सा तप करता है तो श्रावकों से अठाई महोत्सव कराता है, बड़ी बड़ी कुंकुंम पत्रिकाएं
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