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अध्यात्म-कल्पद्रुम प्रत्येक इन्द्रिय से होने वाले दुःख पर दृष्टांत पतंगभं गैणखगाहिमीन द्विपद्विपारिप्रमुखाः प्रमादैः । शोच्या यथा स्युम तिबंधदुःखैश्चिराय भावी त्वमपीति जंतो १४
अर्थ—पतंगिया, भमरा, हिरण, पक्षी, मछली, हाथी, सिंह आदि प्रमाद से एक एक इन्द्रिय के विषय पर वशीभूत होकर जैसे मरण-बंधन . आदि दुःखों से पीड़ा पाते हैं वैसे ही हे जीव ! तू भी इन्द्रियों के वश में होकर चिरकाल तक दुःख (शोच्य) पाएगा। . विवेचन–एक एक इंद्रिय के विषय मे लुब्ध होने से वाचा बिना के जन्तु भी किस प्रकार से दुःखी होते हैं यह नीचे बताया है जब कि हे मानव ! तूं तो पांचों इन्द्रियों के विषयों में लुब्ध बना रहता है तब तेरी कितनी दुर्दशा होगी?
(१) पतंगिया-चक्षुरिंद्रय के वश में होकर दीपक की लौ में जल कर या दीपक में गिरकर मर जाता है। उसकी प्रांखें ही मृत्यु का कारण बनती हैं।
(२) भंवरा-घ्राणेन्द्रिय (नासिका) के वश में होकर सुगंधी के मोह से कमल में बैठा रहता है। सूर्यास्त के साथ ही धीरे धीरे कमल की पंखुड़ियां बन्द होती जाती हैं, वह थोड़ा उड़ता है और यह सोचकर कि अभी तो बहुत दिन है, कमल भी बहुत खिला हुवा है-उसका द्वार खुला ही है, वह फिर से बैठ जाता है और मधुर रस का पान करता है । इस दशा में उसे भान भी नहीं रहता है कि कब सूर्य