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अध्यात्म- कल्पद्रुम
कष्ट तुझे नहीं होंगे और तू परम शांत, आनंद ध्रुव पद को प्राप्त करेगा ।
सकाम शब्द का अर्थ यहां यह है कि इच्छापूर्वक समझ कर किया हुवा, बिना सांसारिक अभिलाषा का काम । पौद्गलिक पदार्थों की अनेच्छा व केवल कर्म क्षय की ही इच्छा से जान बूझकर जल्दी से जल्दी कर्म रहित होने के लिए किये जाने वाले तप सकाम हैं । जब आत्म जागृति प्राप्त हो जाती है तब बिना धारणा से भी शुद्ध बरताव ही होता है, तब कर्मक्षय की इच्छा भी नहीं रहती है। अकाम शब्द का अर्थ है बिना तप के, स्वभाव से ही कर्म का क्षय होना, जिस कर्म की जितनी स्थिति है वह भुगतने के बाद वह आत्मा से अलग हो जाता है । आत्म दशा का भान न होने से प्राणी ८४ लाख जीवा योनि में इसीलिए भटकता है और भटकते हुए नए कर्म बांधता जाता है, पिछले कर्म पूरे भुगत भी नहीं पाता है कि पल पल में नए बांधता जाता है अतः संसार का स्वरूप समझ कर सकाम निर्जरा से भवचक्र को समाप्त करना चाहिए। जैसे ग्राम केला आदि फल वृक्ष पर लगे रहते हुए भी पकते हैं लेकिन उनका व्यापार करने वाले लोग पूरे पकने से पहले ही तोड़ कर उन्हें विधि से पकाते हैं व वृक्ष पर पकने के टाइम से पहले ही उनको पका लेते हैं वैसे ही भ्रात्मार्थी लोग कर्म को रोते हुए भुगतने की अपेक्षा तप संयम द्वारा उसे शीघ्र नष्ट कर देते हैं इसी का नाम सकाम निर्जरा है। फलों का वृक्ष पर अपने अपने आप पकना यह प्रकाम निर्जरा का दृष्टांत है ।