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वैराग्योपदेश
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होगा तो पत्ते व डालियां सब अपने आप आते रहेंगे, अतः तू सर्वस्व भी छोड़ देना परन्तु धर्म को न छोड़ना । सकाम दुख सहन के लाभ
दुखं यथा बहुविघं सहसेऽप्यकामः, कामं तथा सहसि चेत् करुणादिभावैः । अल्पोयसापि तव तेन भवांतरे स्यादात्यंतिकी सकलदुःखनिवृत्तिरेव ॥ १८ ॥
अर्थ - जैसे तू कितने हो दुःख बिना इच्छा से सहता है वैसे ही यदि तू करुणा आदि भावना से इच्छा पूर्वक थोड़े से भी दुःख सहन करेगा तो अन्य भव में हमेशा के लिए सर्व दुःखों से निवृत्त हो जाएगा ।। १८ ।। वसंततिलका
विवेचन – हे प्राणी ! जैसे तू गृहस्थाश्रम को निभाने के लिए या अपने माने हुए बड़प्पन को टिकाए रखने के लिए या लोगों से सदा यशकीर्ति सुनते रहने के लिए, अच्छी प्रार्थिक स्थिति होते हुए भी और धन पैदा करता हुवा अनेक कष्ट व परिश्रम उठाता है । निर्धन होने पर धन की पूर्ति के लिए सर्दी गर्मी गुलामी आदि कष्ट है जो कि तुझे विवश होकर सहने पड़ते हैं, प्राप्त होने वाले प्रशांति मिश्रित पुद्गल पदार्थ तेरे लिए वास्तव में कुछ भी हित नहीं करने वाले हैं अतः यदि तू इच्छापूर्वक मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ इन चारों भावनाओं को भाता हुवा कष्ट सहता है या तप आदि करता है तो उस तप के प्रभाव से अन्य भवों में किसी भी प्रकार के
व
पराभव सहता यद्यपि इन सबसे
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