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वैराग्योपदेश
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तरंगों की परवाह न की जाय तो उस पाप से और भावी अनेक पापों से बचा जा सकता है लेकिन यदि मन की इच्छाओं की प्रबलता हो और वे आत्मा की बातों की परवाह नहीं करती हों तब तो उस पाप और अन्य पापों का भय मिटता जाता है और फिर तो पापों की शृंखला बढ़ती जाती है, गिनती ही नहीं रहती । किसी भारी पुण्योदय से किसी भव में जाकर आत्मा को साधारण सा भान होता है कि मैं बुरा कर रहा हूं मुझे सावधान होना चाहिए उस वक्त यदि सद्गुरू या सद्शास्त्रों का योग मिल जाता है तब तो आत्मा का अंधकार धीमे धीमे मिटने लगता है और ज्ञान का प्रकाश फैलते फैलते कुछ भवों में संपूर्ण ज्ञान दिवाकर का उदय हो जाता है अर्थात केवल ज्ञान हो जाता है ।
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हे प्राणी ! मानवभव में तू यदि उस सुअवसर का अवलोकन करेगा तो एकदम प्रकाश नज़र आएगा और पिछले पापों को धोने की तुझे इच्छा उत्पन्न होगी यदि तू उस इच्छा के अनुसार चलेगा तो तेरे द्वारा किए गए अनेक भवों के अनेक पाप नष्ट हो जाएंगे । यदि तू ऐसा नहीं करता है तो यह जीवन भी भवों की परंपरा की एक संख्या को भुगताकर खतम हो जाएगा और तू फिर भटकता ही फिरेगा । इसी विषय में महावीर प्रभु के हस्त दीक्षित शिष्य धर्मदासगणि ने कहा है कि : - लकड़ी आदि का प्रहार, प्राण हरण, झूठा कलंक लगाना, परधन हरण आदि जो एक बार किए जाते हैं उनका कम से कम उदय ( जघन्य उदय) दस बार तो
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