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वैराग्योपदेश
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रहा है और उनसे मीठा रहता हुवा भी धीरे धीरे उनका द्रव्य हरण कर अपने लिए नए बंगले व मोटरें खरीदता है । उनकी प्राणप्रिय प्रियाओं और बच्चों का हिस्सा छीनकर उनको टुकड़ों का मोहताज कर देता है ? बिचारों के बदन पर जाड़े कपड़े भी नहीं रहने पाते । तू उन्हीं के धन पर मौज उड़ाता है एवं उनकी मूर्खता व अज्ञानता का लाभ उठाता है लेकिन विकराल काल तेरी इंतज़ार कर रहा है । फिर तेरे ये बंगले व मोटरें तो यहीं रह जायगी परन्तु तेरे काले कारनामें तेरे साथ जावेंगे और तुझे अनेक तरह के कष्ट देंगे। जन्म से अंधे, लंगड़े, बहरे, कोढ़ी व टीबी के रोगी और किसी धरती में से नहीं पाते हैं, पापी ही तो मरकर उस दशा को पाते हैं।
___माना हुवा सुख-उसका परिणाम प्रात्मानमल्पैरिह वंचयित्वा, प्रकल्पितैर्वा तनुचित्तसौख्यैः । भवाधमे कि जन सागराणि, सोढासि ही नारकदुःखराशीन १२ ___ अर्थ हे मनुष्य ! शरीर और मन के कल्पित सुखों द्वारा (जो कि बहुत ही कम हैं,) इस भव में तेरी आत्मा को ठग कर अधम भवों में सागरोपम तक नारकी के दुःखों को तू सहन करेगा ।। १२ ।।
उपजाति विवेचन—मनुष्य भी एक विचित्र प्राणी है। उसके सुख के साधनों और आशाओं का पार ही नहीं है । जिन्हें वह सुख मानता है थोड़े काल बाद वे ही दुःख के कारण बन जाते हैं। भूख से दुःखी था तो खूब पेट भर कर स्वादिष्ट