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वैराग्योपदेश
२१७ शरण में गए और पीछे लौटकर क्या देखते हैं कि कुत्तों ने सब विवाद निपटा दिया है अर्थात उस विवाद की जड़ दूध पाक को वे चाट गए हैं। सबने पछतावा किया कि इतने कठिन परिश्रम से निर्लज्ज होकर भीख मांगकर भी जिस उत्तम वस्तु को जीवन में प्रथम बार बनाया उसे चख भी न सके । हाय हमारी प्राशा व महनत व्यर्थ गई। इसी प्रकार से हम भी महान प्रयत्न से मिले हुए मनुष्य भव को व्यर्थ न जाने दें, नहीं तो इस दरिद्र कुटुम्ब की तरह पछताना पड़ेगा।
___६. दो वणिकों का दृष्टांत किसी गांव में दो निर्धन वणिक रहते थे। उन्होंने एक यक्ष की उपासना कर उसे प्रसन्न किया। यक्ष ने कहा कि, "काली चवदस के दिन तुम एक एक गाड़ा तैयार कर रखना, मैं तुम्हें गाड़ों सहित रत्नद्वीप को ले जाऊंगा और दोपहर (६ घंटे) के बाद वापस यहां छोड़ दूंगा । तुम अपनी इच्छानुसार रत्नों से गाड़े भर लेना" । निश्चित दिन दोनों वाणिकों को रत्नद्वीप पहुंचाया गया। जैसे वे लोग वहां पहुंचे तो क्या देखते हैं कि दो सुन्दर पलंग सुगंधित पदार्थ से वासित हुए गदलों से ढके हुए बिछे हुए हैं, एक को बहुत नींद आ रही थी, उसने सोचा ६ घंटों में से एक घंटा नोंद ले लूं बाद में रत्न एकत्रित करूंगा और वह सो गया। दूसरा तो उसी समय से ही रत्न बटोरने में उन्हें और गाड़े में रखने लगा। समय पूरा होने पर यक्ष ने दोनों को गाड़ों में डाला और जहां से चले थे वहीं छोड़ दिया। २६