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वैराग्योपदेश
- २१५ धर्म नहीं करते हैं लेकिन पाप भी नहीं करते हैं, वे द्वितीय के समान हैं। जो धर्म तो नहीं करते वरन अनेक पाप करते हैं, जीव हिंसा करते हैं झूठ कपट से व्यवहार करते हैं वे तीसरे भाई के समान मूल पूंजी (मानव भव) को खोकर नरक आदि की तैयारी करते हैं।
६. गाड़ीवान का दृष्टांत एक गाड़ी वाला किसी गांव से दूसरे गांव को जा रहा था । उस गांव के दो मार्ग थे । एक पथरीला, खड्डे वाला व खराब था, दूसरा अच्छा था। दोनों को वह जानता था लेकिन वह जानबूझ कर प्रथम मार्ग पर अग्रसर हुवा । परिणामतः राह में पत्थरों के कारण गाड़े की धुरी (लोहे की धुरी जो दोनों पहियों को जोड़ती है—गाड़े का आधार) टूट गई और वह जंगल में अकेला ही भटकता रहा। इसी तरह से कई विद्वान व शास्त्रज्ञ धर्म के मर्म को जानते हुए भी विपरीत मार्ग अंगीकार करते हैं, वे जानते हैं, कि मोह और प्रमाद से संसार बढ़ता है यह मार्ग खराब है। दूसरा मार्ग शम, दम, दया, दान व धैर्य युक्त होने से पुण्य का है परन्तु प्रायः करके जानकार मनुष्य तक गाड़ी वाले की तरह प्रथम मार्ग का अनुसरण कर संसार वन में भटकते हैं।
७. भिक्षुक का दृष्टांत एक दरिद्र भिखारी अन्न का भी मोहताज था। एक बार वह किसी यक्ष के मंदिर के पास सोया ही था कि क्या देखता है एक विद्यासिद्ध पुरुष घड़े की सहायता से इच्छित