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वैराग्योपदेश
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३. जलबिन्दु का दृष्टांत __एक बार किसी मनुष्य को बहुत प्यास लगी, उसने किसी देव की उपासना की । देव ने उसे क्षीर समुद्र के किनारे ला छोड़ा। वह मनुष्य बोला कि मुझे तो मेरे गांव के बाहर घास की नोक पर पड़ी हुई मोती के समान जलबिंदुओं को पीने की इच्छा है अतः देव उसे वहां ले आया परन्तु हवा के कारण सब प्रोस बूंदे गिर चुकी थीं।. देव उसे वहीं छोड़कर चला गया। उस मूर्ख ने क्षीर समुद्र के जल को छोड़कर अोस की बूंदों को पसंद किया परंतु वे भी नहीं मिलीं और वह प्यासा ही रहा । देव को प्रसन्न करके उसने कोई लाभ नहीं उठाया। जलबिंदु के समान विषय-कषाय, देवतुल्य सद् गुरू, क्षीर समुद्र तुल्य सम्यक् चरित्र समझें । जैसे वह मूर्ख मनुष्य दोनों तरफ़ से गया वैसे ही भोग ऐश्वर्य के वशीभूत हुए हम भी मानवभव को खो रहे हैं, उसका लाभ नहीं ले रहे हैं। ..
४. आम्र का दृष्टांत किसी राजा को आम खाने का बड़ा शौक था। एक बार उसे विशूचिका (पेचिस-दस्तें लगना) का रोग हुवा। उसने कई इलाज कराए, पर सब व्यर्थ गए। एक वैद्य ने कहा कि “यदि
आप जीवन भर आम खाना छोड़ दो तो अच्छे हो सकते हो, जिस दिन आम खायोगे फिर विशूचिका हो जाएगी और आप अवश्य मर जाओगे"। राजा ने ग्राम का त्याग किया। एक बार वह अपने मंत्री सहित जंगल में शिकार खेलने गया। वहां उसने सुन्दर आम देखे और उन्हें खाने की उसकी इच्छा तीव्र होती गई,