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अध्यात्म-कल्पद्रुम
को मारा गया और उसका मांस भूनकर खाया गया । ठीक मेहमान के भोज्य बनने प्रमाद द्वारा उस बकरे संसार में आनंद मना
इसी तरह से हम भी यमराज के के लिए मस्त होकर खा पी रहे हैं, की तरह मृत्यु का भान भूले हुए रहे हैं ।
२. काकिणी का दृष्टांत
एक गरीब मनुष्य धन कमाने के लिए परदेश गया । वह महा मुसीबत से एक हजार स्वर्ण मुद्रा कमा घर लौटने लगा, रास्ते में खर्च करने के लिए एक मोहर के रुपये कराए व एक रुपए की ८० काकिणी (सिक्का) मिलती थी वह ले लीं । बाकी धन को एक बांस की नली में रख कर उसे अपनी कमर में बांध ली | चलते चलते उसके साथ वालों ने एक जगह पड़ाव डाला । वह गरीब हिसाब मिलाने लगा तो एक काकिणी कम हो गई । उसे याद आया कि पिछले पड़ाव पर एक वृक्ष के नीचे वह पड़ी रह गई है । उसने नली को एक वृक्ष के नीचे गाड़ दिया और उस एक काकिणी के लिए पीछे गया परंतु काकिणी वहां नहीं मिली । इधर लौटकर देखता क्या है कि वह बांस की नली भी नहीं है, किसी ने निकाल ली थी । इस तरह उस पुण्यहीन ने एक काकिणी के लोभ से एक हजार मोहरें खो डालीं । इसी तरह से संसार के काम भोग काकिणी तुल्य हैं और दुर्लभ मानवभव हजार मोहरों के तुल्य है जो महान कठिनता से कई भवों के बाद मिला है अतः इसका सदुपयोग कर लेना चाहिए ।