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अध्यात्म-कल्पद्रुम
मंत्री ने मना किया लेकिन राजा माना नहीं और ग्राम के लोभ को न रोककर मृत्यु को प्राप्त हुवा । जैसे राजा ने जिल्हा के वशीभूत होकर अपने प्राण खोए वैसे ही हम भी सब तरह के विषय कषायों के वश में होकर — कर्मों की असाध्य बीमारी की परवाह न कर मानव भव को खो रहे हैं । हमें ग्राम रूप विषयों के लिए जीवन न खो देना चाहिए ।
५. तीन व्यापारियों का दृष्टांत
एक व्यापारी के तीन पुत्र थे । उनकी परीक्षा लेने के लिए उसने प्रत्येक को एक एक हजार स्वर्ण मुद्राएं देकर कहा कि इस धन से गुजारा चला कर इतने समय बाद वापस घर आओ । पहला समझदार था उसे कोई शौक या दुर्व्यसन नहीं था अतः उसने व्यापार करके मितव्यता से पर्याप्त धन पैदा किया । दूसरे ने सोचा कि मूल को खर्च न कर सारे नफे व ब्याज से आनंद करूं । तीसरे ने सोचा कि खाओ पीओ लहर करो धन है जितने मौज उड़ाम्रो । उसने वैसा ही किया । निश्चित समय पर सब घर लौटे और पिता को अपना २ हिसाब बताया । पहले के पास खूब धन निकला, दूसरे के पास केवल मूल पूंजी ज्यों की त्यों पाई गई परन्तु तीसरे के पास से फूटी कौड़ी भी नहीं मिली । परिणामतः पहला धनवान व यशस्वी होकर स्तुति का पात्र बना, दूसरा साधारण स्थिति का माना गया और तीसरा निंदित होकर घर से निष्कासित हुवा । जो जीव मनुष्य भव पाकर धर्म ध्यान करते हैं वे प्रथम भाई के समान आते भव को सुखी करते हैं, जो