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अध्यात्म- कल्पद्रुम
सकता जैसे सूने, निर्जन गांव में से नाज का एक दाना भी नहीं मिल सकता है ।
बिना मनोनिग्रह के विद्वान भी नरकगामी होता है श्रकारणं यस्य च दुर्विकल्पैर्हतं मनः शास्त्रविदोपि नित्यम् । घोरैरर्धनिश्चितनार कायम त्यो प्रयाता नरके स नूनम् । १४ ।।
अर्थ-जिस प्राणी का मन निरंतर खराब संकल्पों से आहत रहता है, वह प्राणी चाहे जैसा विद्वान भी हो तो भी भयंकर पापों से नारकी का निकाचित प्रायुष्य बांधता है और मृत्यु पाने पर अवश्य ही नरक को प्रस्थान करता है ॥ १४ ॥ उपजाति
विवेचन धर्म विद्या प्राप्त करने से जीव को संसार की वास्तविकता का भान हो जाता है, उसे जन्म मरण के कारणों की समझ आ जाती है फिर भी यदि मन सांसारिक विषयों में उलझा रहता हो और संकल्प विकल्प करता रहता हो एवं आत्महित के विचार न आते हों तो वह प्राणी अवश्य ही नरकगामी होता है । विशेष जानकार को विशेष सावधान रहना चाहिए कारण कि बाल (भोले ) जीव उसका अनुकरण करते हैं यदि वह स्वयं जानते हुए भी यश आदि की कामना से वास्तविकता को छिपाता रहकर निरंतर कुविकल्पों से आहत रहता हो तो स्वयं भी डूबता है तथा औरों को भी डुबोता है | अतः सावधानी की आवश्यकता है ।
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