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अध्यात्म-कल्पद्रुम जब तक लव (दो घड़ी का सतरहवां भाग २ मिनिट ४६॥ सेकिंड) आदि कुल्हाड़े के प्रहार तेरे आधाररूप जीवन वृक्ष को नहीं काट डालते तब तक हे आत्मा ! अपने हित के लिए प्रयत्न कर; उसके कट जाने के पश्चात् तू परतंत्र हो जाएगा और कौन जाने तू कौन (क्या) होगा और कहां होगा और किस तरह से होगा ?
___विवेचन—क्या मृत्यु को किसी ने जीता है ? नहीं, मृत्यु ने सबको जीत रखा है। आज मानव अपने आपको वैज्ञानिक उन्नति के शिखर पर पहुंचा हुवा मानता है । क्या उसने मृत्यु पर काबू पा लिया है ? नहीं यह उसकी शक्ति से परे की बात है। आज की आधिभौतिक विद्या आध्यात्मिक विद्या से कोसों दूर रहती है। मानव यही मानता जा रहा है कि उसे मरना ही नहीं है। इसीलिए वह हर समय बेफिक होकर हंसता रहता है काम भोगों के साधन जुटाने में ही अपनी शक्ति का संचय करता है लेकिन वह यह सब जानते हुए भी मृत्यु को भुलाने का प्रयत्न करता है । जब मृत्यु देवी विकराल रूप से सामने आ उपस्थित होती है तब उसे होश आता है कि मैंने तो जीवन भर मौज शौक और राग रंग किये अब मेरा क्या होगा? वह उस अनजान चूहे के बच्चे की तरह भूल में रहता है जो घर के अंधेरे कमरे में मौज से खाता पीता है व कुतर कुतर करता हुवा कपड़े आदि काटता है, उछलता है, कूदता है, आनंद मानाता है, उसके इस आमोद प्रमोद की प्रमत्त दशा का लाभ लेकर बिल्ली राणी चुपके चुपके