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अथ दशमो वैराग्योपदेशाधिकारः
मृत्यु को शक्ति, उस पर विजय और उस पर विचार
किं जीव माद्यसि हसस्ययमीहसेऽर्थान्, कामांश्च खेलसि तथा कुतुरशंकः । चिक्षिप्सु घोरनरकावटकोटरे त्वामभ्यापतल्लघु विभावय मृत्युरक्षः ॥ १ ॥ आलंबनं तव लवादिकुठारधाताश्छिदंति जीविततरु न हि यावदात्मन् ।। तावद्यतस्व परिणामहिताय तस्मि
श्छिन्ने हि कः क्व च कथं भवतास्यतंत्रः ॥ २ ॥ अर्थ अरे जीव ! तू क्या देखकर अभिमान करता है ? क्यों हंसता है ? धन और काम भोगों की इच्छा किस लिए करता है ? और किस पर निशंक होकर कुतुहल से खेल करता है ? कारण कि तुझे गहरे नरक के खड्डे में फेंक देने की इच्छा से मृत्यु राक्षसी बहुत तेजी से तेरे पास आती जा रही है, इसका तू विचार तो कर ॥ १ ॥
वसंततिलका