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अध्यात्म- कल्पद्रुमं
सिंह माना है और दुर्ध्यान को सूअर माना है । वास्तव में सद्भावना सिंह के समान है यह तो अनुभव से होगा । प्रार्थना में आता है कि:
ही मालूम
हम मगन भए प्रभु ध्यान में,
विसर गई दुविधा तन मन की - अचिरा सुतगुण गान में ।
जिसका मन सदा सांसारिक विषय वासना से वासित रहता है या व्यापार धंधे में संलग्न रहता है या धन के लिए भटकता रहता है उसे धर्म की बातें सुनना पसंद नहीं है । उसे ये बातें पुराने लोगों की या पुराने जमाने की फालतू सी लगती हैं । लेकिन जिस भाग्यशाली का मन सदा आत्मा परमात्मा के विचार में रहता है, सदा स्व पर हित साधन के भावों से ओत प्रोत रहता है उसे सांसारिक बातें विष सामान प्रतीत होती हैं । सुखी व शांत रहने के लिए अर्थात शिवसाधन के लिए सद्भावना आवश्यक है ।
सदा सर्वदा, सर्वसंयोगों में एक जैसा मन रखो
यह शिक्षा ग्रहण करो
इसका प्रयोग करो,
इसके अनुसार चलो, इसके अनुसार बात करो
इस पर आधार रखो
इसमें विश्वास रखो
इति सविवरणश्चित्तदमननाम नवमोऽधिकारः