________________
चित्तदमन
१६१ मनो निग्रह से मोक्ष योगस्य हेतुर्मनसः समाधिः, परं निदानं तपसश्च योगः । तपश्च मूलं शिवशर्मवल्ल्या, मनः समाधि भज तत्कथंचित् ॥१५॥
अर्थ-मन की समाधि, योग का कारण है; योग, तप का उत्कृष्ट साधन है और तप, शिव सुख वल्ली का मूल है; अतः किसी भी तरह से मन की समाधि (एकाग्रता) रख ।। १५ ॥
उपजाति विवेचन-किसी वस्त्र पर कोई रंग चढ़ाना हो तो पहले उसे साफ करना चाहिए । उसका कच्चा रंग उड़े बिना नया रंग नहीं चढ़ सकता है। खेत को पहली फसल के ढूंठे निकाले बिना या उसे हमवार किए बिना या बार बार जोते बिना नई फसल नहीं उग सकती है ठीक उसी तरह से भवरूप अग्नि से दग्धप्राणी को यदि शांति की-मोक्ष की अभिलाषा हो तो सर्व प्रथम मन को एकाग्र तथा राग द्वेष रहित करना चाहिए। मन की शांति या समता ही योग का कारण है, योग से तप किया जाता है। तप मोक्ष रूपी वेल की जड़ है प्रतः जैसे बने वैसे मन की एकाग्रता साधना चाहिए, यह तभी हो सकता है जब कि जन संपर्क व वस्तु परिग्रह कम किया जाय । सांसारिक विषयों में भटकने वाले मन की लगाम काबू में आए बिना समाधि नहीं हो सकती है।
मनो निग्रह के चारउपाय स्वाध्याययोगैश्चरणक्रियासु, व्यापारणैर्वादशभावनाभिः । सुधीस्त्रियोगी सदसत्प्रवृत्तिफलोपयोगैश्च मनो निरुध्यात् ॥१६॥