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अध्यात्म- कल्पद्रुम
कोढ़ी की तरह से लक्ष्मी सुन्दरी का पाणिप्रहण करने में योग्य हो जाता है और चण्डाल की तरह से शुभ गतिरूप मंदिर में प्रवेश करने के लायक भी नहीं रहता है ॥ ११ ॥
विवेचन-परवश जीव की दशा इस श्लोक में स्पष्ट बताई है । वह कीड़ेयुक्त कुत्ते की तरह, निर्धनी कोढ़ी की तरह व घृणित चंडाल की तरह पद पद पर अपमानित होता है, एवं उसे जरा सी भी शांति नहीं मिलती है ।
मनोनिग्रह बिना के तप जप आदि धर्म
तपो जपाद्याः स्वफलाय धर्मा, न दुर्विकल्पैर्हतचेतसः स्युः । तत्खाद्यपेयैः सुभृतेऽपि गेहे, क्षुधातृषाभ्यां स्त्रियते स्वदोषात् ॥ १२ ॥
अर्थ - जिस प्राणी का चित्त दुर्विकल्पों से मारा गया है उसको तप जप आदि धर्म अपना फल नहीं देते हैं; ऐसा प्राणी अन्न जलपूर्ण घर में भी अपने ही दोष से भूख और प्यास के मारे मर जाता है ।। १२ ।। उपजाति
विवेचन – कई बार जीवन में ऐसा होता है कि भोजन तैयार होने पर भी हम घरेलु झगड़ों के कारणों से विषाक्त होकर भूखों मरते रहते हैं । घर के लोग बार बार अनुरोध करते हैं, बच्चे गिड़गिड़ाते हैं, स्त्री पैरों पड़ती है फिर भी क्रोध दावानल से झुलसे हुए हम विक्षिप्त चित्त वाले होने से खाद्य पदार्थ की तरफ़ देखते भी नहीं हैं और हमारे ही कारण से घर के अन्य लोग भी भूखों मरते हैं । इस प्रकार के स्वभाव बाले मनुष्य स्वयं भी दुःखी होते हैं और दूसरों को