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अध्यात्म-कल्पद्रुम केवल अभ्यास करने वाले और अल्पाभ्यासी साधक में श्रेष्ठ कौन ? धन्याः केऽप्यनधीतिनोऽपि सदनुष्ठानेषु बद्धादरा, दुःसाध्येषु परोपदेशलवतः श्रद्धानशुद्धाशयाः । केचित्त्वागमपाठिनोऽपि दधतस्तत्पुस्तकान् येऽलसाः अत्रामुत्रहितेषु कर्मसु कथं ते भाविनः प्रेत्यहाः ॥ ७ ॥
अर्थ-कितने ही प्राणी जिन्होंने शास्त्र का अभ्यास नहीं किया है तो भी दूसरों के ज़रा से उपदेश से कठिन (दुश्कर), अनुष्ठानों का आदर करने वाले और श्रद्धापूर्वक शुद्ध आशय वाले हो जाते हैं उनको धन्य है। विपरीत इसके कितने तो आगम के अभ्यासी होते हुए व आगम पुस्तकों को साथ रखते हुए भी इस भव और परभव के हितकारी कार्यों में प्रमादी हो जाते हैं और परलोक को नष्ट कर डालते हैं उनका क्या होगा ? ॥ ७ ॥ शार्दूलविक्रीडित
विवेचन -जो विशेष शास्त्र जानता है वही कभी २ अधिक भूलता है। उसे ही (संशय) कुशंका आदि प्रमाद उत्पन्न हो जाते हैं जिससे वह आत्मनाश के साथ ही साथ अनेक भोले जीवों को अपने साथ कुगति में घसीटता है । सरल परिणामी जीव यद्यपि अधिक पढ़े लिखे नहीं होते हैं तथापि किसी शास्त्रज्ञ पंडित या मुनिराज के वचनों पर श्रद्धा रखकर अत्यंत कठिन तप (उपधान, वर्षी तप, अोली, वीस स्थानक का तप आदि) करने को उद्यत हो जाते हैं व करते भी हैं। उन्हें धन्य है। विपरीत इसके कितने ही महामना, सूरि पुंगव शासन सम्राट, देशोद्धारक, प्रांत केसरी आदि पदवी धारक