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अध्यात्म-कल्पद्रुम
नरक की अग्नि में तलेगा अतः तू उस (मन मछलीमार) पर विश्वास न कर ॥ १॥
वंशस्थवृत्तं विवेचन . यह आत्मा भोली मछली की तरह है, जब कि मन मछलीमार की तरह है। जैसे मछलीमार बारीक डोरी की जाल बिछाकर मछली को फंसाता है बाद में उसे घर ले जाकर कढ़ाई में भूजता है, ठीक उसी तरह से यह मन भी तरह तरह की कुविकल्परूपी डोरी से बनी जाल में आत्मा को फंसाता है और उसे नरकरूपी अग्नि में सेकता है । वास्तव में मन यदि काबू में न हो तो अनेक उत्पात मचाता है, तथा इन्द्रियों की सहायता से अनेक पापकारी काम करता है, यद्यपि करते वक्त वे काम मधुर मालूम होते हैं परन्तु बाद में कटु फल के देने वाले होते हैं अतः मन मछलीमार पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
मन मित्र से अनुकूल होने की प्रार्थना चेतोऽर्थये मयि चिरत्नसख प्रसीद, कि दुर्विकल्पनिकरैः क्षिपसे भवे माम् । वद्धोऽञ्जलिः कुरु कृपां भज सद्विकल्पान,
मैत्री कृतार्थय यतो नरकाबिभेमि ॥ २ ॥ अर्थ हे मन ! मेरे चिरकाल के मित्र ! मैं तुझसे प्रार्थना करता हूं कि मेरे पर कृपा कर ! मैं हाथ जोड़कर खड़ा हूं, मेरे पर कृपा कर, अच्छे विचार कर और अपनी लंबे समय की मित्रता सफल कर, कारण कि मैं नरक से डरता हूं ॥२॥
वसंततिलका