________________
अथ नवमश्चित्त
दमनाधिकारः ..
इन्द्रियों पर नियंत्रण, प्रमाद कषाय का त्याग, समभाव, आदि विषय में जो कुछ कहा उसका तात्पर्य यही है कि मन पर अंकुश रखना चाहिए। मन पर काबू न हो वहां तक शास्त्राभ्यास और धार्मिक बाह्य क्रियाएं भी योग्य फल की अपेक्षा अल्प फल देती हैं जब कि कभी कभी मन को वश में करने वाला प्राणी पराधीनता से पाप क्रियाओं में रत रहता हुवा भी अल्प दोष का भागी बनता है यह सूक्ष्म विषय इस ग्रंथ के मध्य बिंदुरूप अधिकार में बताते हैं जो कि पुस्तक के मध्य में ही पाया है।
मन धीवर का विश्वास न करो कुकर्मजालैः कुविकल्पसूत्रजैनिबध्य गाढं नरकाग्निभिश्चिरम् । विसारवत् पक्ष्यति जीव ! हे मनः, कैवर्तकस्त्वामिति मास्य विश्वसीः ॥ १॥
अर्थ हे चेतन ! मनधीवर, (मन–मछलीमार) कुविकल्परूपी रस्सियों से बनी हुई कुकर्मरूप जाल बिछाकर उसमें तुझे मजबूत उलझाकर लंबे समय तक मछली की तरह से २१