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अध्यात्म-कल्पद्रुम है । उसे तो सूखी हड्डी चबाते हुए कुत्ते की तरह विषय सेवन में आनंद आता रहता है जब कि कुत्ता यह नहीं जानता है कि खून हड्डी से नहीं वरन उसके मुंह से निकल कर उसे स्वाद दे रहा है उसी प्रकार से हम जिन विषयों में सुख महसूस कर रहे हैं वे विषय हमें निर्वीर्य या अशक्त कर हमारा आत्म नाश कर रहे हैं । अतः शास्त्रों को पढ़कर ज्ञान नेत्रों द्वारा संसार के स्वरूप को देखकर हमें समस्त दुःखों का अंत लाना चाहिए।
इति अष्टमोध्यायः