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अध्यात्म-कल्पद्रुम मछली-तंदुलमत्स्य पैदा होती है और वहां बैठी २ वह क्या देखती है कि मगरमच्छ मछलियों को खाने के लिए मुंह खोलता है उसमें कई छोटी बड़ी मछलियां पानी के साथ मुंह में आ जाती हैं, मुंह बंद कर वह पानी निकाल देता है और मछलियों को रोक लेता है। ऐसा करते हुए दांतों के छिद्रों में से कई छोटी छोटी मछलियां बाहर निकल जाती हैं। वह तंदूलमत्स्य क्या सोचता है कि यदि मैं इतना बड़ा होता तो एक भी मछली को जाने न देता, ऐसा विचार करके वह तेतीस सागरोपम का सातवीं नरक का आयुष्य बांधता है । वह मछलियां खा नहीं सकता है फिर भी कुविकल्प से नरक भुगतता है,इसी तरह से हम भी कई कामों में प्रवृत्त न होते हुए भी कुविकल्प द्वारा नरक का आयुष्य बांधते हैं। दूसरी तरफ सदभाव से जीरण सेठ ने प्रभु महावीर को पारणा कराने की उत्कृष्ठ भावना भायी व उत्तम विचारों से चढ़ता हुवा बारहवाँ देवलोक का आयुष्य बांधा, यदि देव दुंदुभी न बजती तो वह मोक्ष पाता । अतः उत्तम फल की प्राप्ति के लिए मन को वश में करना आवश्यक है।
संसार भ्रमण का हेतु मन सुखाय दुःखाय च नैव देवा, न चापि कालः सुहृदोऽरयो वा। भवेत्परं मानसमेव जंतोः संसारचक्रभ्रमणैकहेतुः ॥ ४ ॥
अर्थ—इस जीव को सुख, दुःख न देव देते हैं न काल देता है, न मित्र देते हैं, न शत्रु ही देते हैं (परन्तु) मनुष्य को संसारचक्र में फिराने का मात्र एक कारण मन ही है ॥ ४ ॥
उपजाति