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अध्यात्म-कल्पद्रुम अर्थ लोकरंजक शास्त्रों का पाठक होकर केवल नाम मात्र से पंडित कहलाने में तू क्यों आनंदित होता है ? तू कुछ ऐसा अभ्यास करके, ऐसा अनुष्ठान कर कि जिससे तुझे फिर से इस संसार समुद्र में गिरना ही न पड़े ॥ ५ ॥
उपजाति
- विवेचन–मधुर कंठ से कविता पाठ करने वाला कथा वार्ता की स्वरलहरी से सभा को आकर्षित करने वाला, गंभीर गिरा से संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण करने वाला, बिना संकोच के अंग्रेजी, संस्कृत आदि भाषा बोलने वाला, घंटों तक धारा प्रवाह भाषण देने वाला, अनेक तर्क वितर्क से वाद विवाद करने वाला या मयूर की छटा से व्याख्यान देने वाला यदि अपने मन में प्रसन्न होता है कि मैंने कितनों का मन जीत लिया है, चारों तरफ से वाह वाह की पुकार उठती है, तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है, धन्यवाद प्रदान किया जाता है व पारितोषक के रूप में प्रमाण पत्र या मैडल दिया जाता है या सन्मान पत्र अर्पण किया जाता है परंतु यह सब उस स्वयं के आत्मा के लिये तो भार रूप ही है। अतः हे बुद्धि धन ! तू कुछ ऐसा अभ्यास कर कि जिससे संसार समुद्र तरा जाय । मात्र वाह वाही में फूल जाने से क्या लाभ होगा ? अमूल्य औषधि भी यदि सेवन करने की अपेक्षा शरीर पर लगाई जाय तो वह क्या हित कर सकती है ? भव रोग की दवा रूप सत् शास्त्रों का पठन यदि आत्मकल्याण के लिए न करके लोकरंजन के लिए किया गया तो परिणाम वैसा ही